Hindi kavita
लो आओ आज मीलावुं तुमको, नन्ही बेटी सुफीयासे
अभी अभी वो आई है, खुद ईश्वर अल्लाके घरसे—
ईसिलीये वो सोती रहेती, सारे दिन और रातोमे
शायद सूनती रहेती हैं, खोई परीयोंकी बातोमे—
क्या देखे वो क्या सोचे है, कैसे हम क्युं कर जाने
सपने देखे वो हंसती हो, क्या अपने क्या अनजाने—
टकटकती वो देखे मांको, मधुर मधुर जो मुस्काये
नरम नरम हाथोसे पकडे, सब ऊलजन मां सुलजाये—
भैया शानसे चढकर बैठा, है पापाकी गोदीमे
देखो क्या तुफान उठे, जब ये भी बैठे गोदीमे—
जब जी चाहे सोये जागे, दुध पीये या तो रोये
जो मन चाहे खेल रचाये, सबके दिलको बहेलाये—
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”संगीता-मृदुलकी बेटी, केतनकी बहेन, हमारी पोती”૩/१६/२००९
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अति सदा वर्जयेत
प्यार प्रेमका मधुर ये बंधन सब संसारको बांधे
अतिप्रेमके पाशमे परवश मोहमे बदल ये जाये
प्रेम ये थापट मारके बोले, अति अतिको त्याग रे मानव
अति अतिको त्याग———
यम आहार विहार व निद्रा कृष्ण गांव ले जाये
अतिकी आगमे लीपट लीपटकर अपने आप जलाये
समता थापट मारके बोले अति अतिको त्याग रे मानव
अति अतिको त्याग———-
कर्म क्रिया जो जीवन चक्कर सहज भाव चलाये
अतिकर्म जो अनजानेमे फलको विफल बनाये
केशव थापट मारके बोले अति अतिको त्याग रे मानव
अति अतिको त्याग———-
सरयू परीख्
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बेबसका सहारा
बहेन मै तो पराये अपने समज आई
दिलमे आशा अरमान भरी लाई
स्नेह तारके भरोसे थमे चलदी
मेरी सेंथीमे सिंदूर खूशी भरदी
वो मध्यबिंदु मेरे छोटेसे विश्वमे
उसका आवास अंतर विश्वासमे
बना हेतु वो मेरे श्वासौच्छ्वासमे
छुपा आज वो आक्रंद निश्वासमे
तुटा नाजुक वो दोर मजधारे
बहोत सांधा संसार प्रेमतारे
झटकेसे तोड मुजे छोडा नोधार
ऐकली अटुली मै किसके आधार्!
भले नयन रुए अनहोनी आंचसे
जले आत्मदीप शक्तिके साथमे
शर्त ढुंढुंगी खोइ हुइ आपको
सखी! तेरे ये स्मितके सहारे
सखी! तेरे ये स्मितके सहारे
सरयु परीख
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कर्म का मर्म
कर्मका मर्म, मर्मसे धर्म, धर्मसे नीति जो समजे
कर्मअकर्म विकर्मके संगमे सुकर्मकी रीतिको समजे
रोज रोजकी रटमें यदी हो शुध्ध भाव सच्चाई
काम काज और फर्ज कर्जमे आ जायें अच्छाई
सत संसारमें जीते जीते संतकी पदवी पायें
सुख चैनमे रहते हुए भी जनकराज कहेलायें
यम नियमके दस साधन हम मातपितासे सीखें
समभाव समतोलन भक्ति गुरु कृपासे पातें
श्यामकी गीता दीपक मेरा घन अंधार हटायें
राम और सीता हाथ थाम कर सरयू पार करायें
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ये कविता “गीता प्रवचनो–विनोबा भावे” पढ्नेके बाद–-
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प्रार्थना
प्रभु मेरी आशा नहिवत करना
प्रभु मेरी अपेक्षा निर्मूल करना
परणी में सासरमे आई, नये बंधनो बांधी
सबकी सेवा करते करते, एक प्रार्थना चलती–प्रभु
बाल गोपल गोदी मे खेले, सर्व अर्पण पालनमे
पढलिख कर जब चल दिये तब, वोहि प्रार्थना चलती–प्रभु
बेटी मेरी कब ब्याहेगी, मन उमंगमे राचे
बनके पराई बिदा हुई तब , वोहि प्रार्थना चलती–प्रभु
रूमजुम पायल घरमे आयी, पुत्रवधू ये प्यारी
मन चाहे दो मधूर बचन तो, वोहि प्रार्थना चलती–प्रभु
सुखी करके सुखी होनेकी, एक अमूल ये चाबी
जरीतरी नहीं कोई अपेक्षा, ‘सरयू’ संसारीकी–प्रभु
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ऐक कदम आगे तो ऍक कदम पीछे
ऍसी अधि आतमकी गति, सतसंगी
ऍसी अधिआतमकी गति——
आजतक जाना संसार मेरा सवॅस्व
कितने जतनसे जमाया था वचॅस्व
साधन अब उसको बनाउं, रे साधु
ऍसी अधि आतमकी गति——
सुंदर मुझ आवरण सजाया सवौत्तम
आत्माका मंदिर बसते हे पुरुषोत्तम
अक्षर ये क्षरमे समाया, रे साक्षर
ऍसी अधि आतमकी गति——
कभी तमस मंद कभी रजस सत्व तिव्रत्तम
शरीर मन बुध्धिकी पगथीपे उतरचड
उगम आग मूलाधार लागी, रे गुरुजी
ऍसी अधि आतमकी गति——
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भाभी
जाना परदेस, भाइ व्याकुल विदाय
मेरी भाभीकी कोरी थी आंखे
मेरी माताकी आंसुभरी आंखे–
पहेला वो साल, वीरा वसमी विदाय
मेरी भाभीकी स्नेहभरी आंखे
चौथा वो साल, वीरा वसमी विदाय
मेरी भाभीकी भीनी थी आंखे
सातवां वो साल, वीरा वसमी विदाय
मेरी भाभीकी आंसुभरी आंखे–
बरसके बहाव भरे भावकी भीनास
भाभीके स्नेहमे सखीकी सुवास
अंतर ना अंतराय सलूणा सहवास
भाइ और भाभीके प्यारमे विश्वास
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